Sunday, March 23, 2025

naarad kee pippalaad par kripa

नारद की पिप्पलाद पर कृपा

प्राचीन समय की बात है, जब देवताओं और ऋषियों का समय था, और पृथ्वी पर ज्ञान और तप का महत्व अत्यधिक था। एक बार नारद मुनि, जो ब्रह्मा के परम भक्त थे, अपनी वीणा के साथ पृथ्वी की यात्रा पर निकले। उनका उद्देश्य भगवान विष्णु की भक्ति को फैलाना और संसार में धर्म का प्रचार करना था।

एक दिन नारद मुनि एक वट वृक्ष के नीचे बैठे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक छोटा सा बच्चा, जो वय में कम था, तपस्या कर रहा था। वह बच्चा बहुत ध्यानमग्न था और अपनी आँखें बंद किए हुए था। नारद मुनि ने उसकी तपस्या को देखा और यह जानने के लिए कि वह बच्चा कौन है, वह उसके पास गए। 

नारद मुनि ने बच्चे से पूछा, "बच्चे, तुम कौन हो? और क्या कर रहे हो?"


बच्चे ने अपनी आँखें खोलते हुए उत्तर दिया, "मुझे पिप्पलाद कहते हैं। मैं तपस्या कर रहा हूँ ताकि भगवान विष्णु की कृपा मुझ पर बनी रहे और मैं इस संसार के दुखों से मुक्त हो सकूं।"


नारद मुनि ने पिप्पलाद की बातों को सुना और उसकी तपस्या को देखा। वह इस छोटे से बालक की प्रगाढ़ भक्ति और संकल्प से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, "पिप्पलाद, तुम इतने छोटे हो और इतनी कठिन तपस्या कर रहे हो। यह तुम्हारा महान भक्ति-भाव है। भगवान विष्णु की कृपा तुम पर अवश्य होगी। लेकिन तुम्हारी तपस्या का उद्देश्य क्या है?"


पिप्पलाद ने उत्तर दिया, "मुझे भगवान विष्णु से यह वरदान चाहिए कि मैं संसार के सभी प्राणियों के दुखों को हर सकूं और उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखा सकूं। मैं चाहता हूँ कि जो भी जीव कष्ट में हो, मैं उसकी सहायता कर सकूं।"


नारद मुनि ने पिप्पलाद की तपस्या को देखा और उसकी भक्ति को सराहा। उन्होंने कहा, "पिप्पलाद, तुम्हारी भक्ति के कारण भगवान विष्णु तुम पर बहुत प्रसन्न हैं। तुम्हारे हृदय में सच्ची सेवा और मानवता का भाव है। तुम जैसे छोटे से बच्चे में इतना बड़ा भक्ति भाव देखना अत्यंत दुर्लभ है।"


नारद मुनि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और भगवान विष्णु ने पिप्पलाद पर अपनी कृपा बरसाई। इसके परिणामस्वरूप पिप्पलाद को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और वह भगवान विष्णु के परम भक्त बन गए। उनकी भक्ति इतनी प्रगाढ़ थी कि उन्होंने पूरी पृथ्वी पर हर जीव के दुखों को हरने के लिए अपनी तपस्या और सेवा को जारी रखा। 


भगवान विष्णु की कृपा से पिप्पलाद ने ज्ञान और शांति की ओर एक नया मार्ग दिखाया, और वह भक्तों के दिलों में श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक बन गए। 


इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति, तपस्या और भगवान के प्रति समर्पण किसी भी अवस्था या आयु में हो सकता है। पिप्पलाद की तरह हमें भी भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए समर्पण, प्रेम और सेवा की भावना से जीवन जीना चाहिए।

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