भगवान गणेश, जिनका रूप मानव जैसा था और सिर हाथी का था, हमेशा से ही बहुत बुद्धिमान, शांत और सुसंस्कृत माने जाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के प्यारे बेटे गणेश जी का एक खास साथी था — उनका मूषक (चूहा)। मूषक, जो भगवान गणेश का वाहन था, उनके साथ हमेशा रहता था। लेकिन इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है, जो हमें सिखाती है कि भगवान का साथ हर किसी को मिल सकता है, चाहे वह कोई भी रूप क्यों न हो।
कहानी की शुरुआत
एक समय की बात है, भगवान गणेश अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती के पास बैठकर उनसे बात कर रहे थे। गणेश जी बहुत ही शांत और विनम्र थे, लेकिन एक दिन वह थोड़ा चिंतित दिखे। उनकी माँ पार्वती ने देखा और पूछा, "बच्चे, क्या तुम परेशान हो?"
गणेश जी बोले, "माँ, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मुझे कौन सा वाहन चाहिए। मेरे पास एक वाहन होना चाहिए, जिससे मैं आसानी से यात्रा कर सकूं और किसी भी कार्य में मेरी मदद हो सके।"
पार्वती ने हंसते हुए कहा, "बच्चे, तुम्हारे पास तो पहले से ही एक अद्भुत साथी है। तुम्हारा वाहन तुम्हारे पास ही है।"
गणेश जी ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा, "माँ, मेरा वाहन तो अभी तक कहीं दिखाई नहीं दिया।"
तभी पार्वती ने एक हंसते हुए आशीर्वाद दिया और भगवान शिव से पूछा, "शिवजी, क्या आप मेरे बच्चे के लिए एक वाहन चुन सकते हैं?"
भगवान शिव ने गहरी सोच में कहा, "गणेश, तुम्हारे लिए एक सच्चा साथी और वाहन वह होगा जो सबसे अधिक विनम्र, समर्पित और छोटे से छोटा हो। वह होगा एक मूषक (चूहा)।"
गणेश जी को यह सुनकर थोड़ा अजीब लगा, क्योंकि मूषक एक बहुत छोटा और साधारण प्राणी था, लेकिन भगवान शिव ने कहा, "यह मूषक तुम्हारे लिए एक आदर्श वाहन होगा, क्योंकि वह छोटे से छोटे रास्तों से होकर भी तुम्हारे साथ हर जगह जाएगा। वह तुम्हारे समर्पण और सहनशीलता का प्रतीक होगा।"
गणेश जी ने माता-पिता के आशीर्वाद से मूषक को अपना वाहन स्वीकार किया। और तभी से गणेश जी ने मूषक पर सवारी करनी शुरू की।
मूषक और गणेश का संबंध
मूषक, जो पहले कभी छोटे और कमजोर जानवर के रूप में जाना जाता था, अब भगवान गणेश का वाहन बन गया। यह दिखाता था कि भगवान गणेश ने यह समझा कि किसी भी प्राणी में महत्वपूर्ण गुण हो सकते हैं, चाहे वह किसी भी रूप में हो। मूषक गणेश जी के साथ हमेशा रहता था, उनके साथ हर जगह यात्रा करता था, और उनका साथ कभी नहीं छोड़ता था।
मूषक भगवान गणेश के वाहन के रूप में एक सशक्त संदेश देता है — यह कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस रूप में हैं या आपकी स्थिति क्या है, अगर आपके पास विनम्रता, समर्पण और सही दिशा हो, तो आप किसी भी कार्य को सफलता से पूरा कर सकते हैं।
कहानी का संदेश
गणेश जी और उनके मूषक के संबंध हमें यह सिखाते हैं कि हर प्राणी में कोई न कोई विशेषता होती है। न केवल हमारे भीतर, बल्कि हमारे आस-पास भी बहुत सी चीजें हमें सीखने के लिए होती हैं। भगवान गणेश ने मूषक को अपना वाहन बनाकर यह साबित किया कि सबसे साधारण चीजों में भी विशेषताएँ छिपी होती हैं, अगर हम उन्हें समझने की कोशिश करें।
साथ ही, यह कहानी यह भी दर्शाती है कि किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए हमें सही मार्गदर्शन, समर्पण और विश्वास की आवश्यकता होती है, जो हमें भगवान गणेश से मिलती है।
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