Monday, March 10, 2025

सबसे बड़ा भक्त कौन?

 सबसे बड़ा भक्त कौन?

Buy Book : Ramayan 

एक समय की बात है, ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के बीच एक वार्ता हो रही थी। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से पूछा, "प्रभु, आपने इस संसार की रचना की है, और हर जीव के जीवन में एक उद्देश्य छिपा है। हर कोई अपनी भक्ति और सेवा में लगा रहता है। लेकिन प्रभु, आप मुझे बताइए, इस संसार में सबसे बड़ा भक्त कौन है?"

भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले, "यह सवाल बहुत गहरा है, ब्रह्मा जी। सबसे बड़ा भक्त वह नहीं है जो बस मंदिरों में पूजा करता है या मनमाने तरीके से तपस्या करता है। सबसे बड़ा भक्त वह है जो बिना किसी स्वार्थ के, निःस्वार्थ भाव से मेरी सेवा करता है। भक्ति का मापदंड सिर्फ बाहरी कार्यों से नहीं, बल्कि हृदय की भावना से निर्धारित होता है।"

ब्रह्मा जी ने भगवान की बातों को ध्यान से सुना, लेकिन फिर भी उनके मन में एक जिज्ञासा बनी रही। वह जानना चाहते थे कि ऐसा कौन सा उदाहरण है, जिससे वह सबसे बड़े भक्त को पहचान सकें। भगवान विष्णु ने उनकी जिज्ञासा को समझा और कहा, "मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ, जिससे तुम्हारा भ्रम दूर हो जाएगा।"

फिर भगवान विष्णु ने एक बहुत पुरानी कथा सुनाई:

कथा: सबसे बड़ा भक्त

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक साधारण से व्यक्ति का जन्म हुआ था। उसका नाम था तुलसीदास। वह एक साधारण किसान था, लेकिन उसका हृदय शुद्ध और भक्तिभाव से परिपूर्ण था। वह अपने दिन की शुरुआत भगवान के नाम से करता और जीवन के हर कार्य में भगवान की सेवा का एक रूप देखता था। 

गाँव के लोग उसे तुच्छ मानते थे, क्योंकि वह पढ़ा-लिखा नहीं था और उसकी हालत भी बहुत खराब थी। उसे मंदिरों में जाने का समय नहीं मिलता था, और न ही वह किसी बड़े संत की सेवा करता था। लेकिन एक दिन गाँव के एक पंडित ने तुलसीदास से मजाक करते हुए कहा, "तुम इतने साधारण हो, भगवान को तुम्हारी भक्ति कैसी हो सकती है?"

तुलसीदास चुपचाप उस पंडित की बातों को सुनते रहे और फिर कहा, "भगवान के लिए भक्ति केवल दिखावे का काम नहीं है, बल्कि वह तो दिल की सच्चाई से होती है। मैं दिन-रात भगवान का नाम अपने हृदय में बोलता हूँ और उन्हें सच्चे मन से प्यार करता हूँ।"

पंडित ने उनकी बातों को हल्के में लिया और हंसते हुए कहा, "तुम्हारा भक्ति का तरीका बहुत अजीब है, देखो भगवान कभी तुम्हारे पास नहीं आएंगे।"

लेकिन तुलसीदास ने उसे कोई जवाब नहीं दिया और अपने काम में व्यस्त हो गए। कुछ समय बाद, भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त तुलसीदास का दर्शन करने का निश्चय किया। वे उनके घर पहुंचे और देखा कि तुलसीदास खेतों में काम कर रहा था, लेकिन जब उसने भगवान को देखा, तो उसका हृदय आनंद से भर गया।

भगवान विष्णु ने कहा, "तुलसीदास, तुम सचमुच मेरे सबसे बड़े भक्त हो। तुम्हारी भक्ति किसी मंदिर, पूजा, या तपस्या से नहीं, बल्कि तुम्हारे जीवन के हर छोटे कार्य में छिपी है। तुमने मुझसे जो प्रेम किया है, वह दुनिया के किसी भी बड़े तपस्वी या योगी से कहीं ज्यादा है।"

तुलसीदास ने भगवान विष्णु के चरणों में सिर झुका दिया और कहा, "प्रभु, मेरी कोई विशेषता नहीं है, मैं तो केवल आपका नाम लेने वाला एक साधारण इंसान हूँ।"

भगवान ने कहा, "तुम्हारी भक्ति इस संसार के हर दिखावे से परे है। सबसे बड़ी भक्ति वही होती है, जो बिना किसी स्वार्थ के होती है, और वही भक्ति तुम्हारे हृदय में है।"

भगवान विष्णु ने कथा समाप्त की और ब्रह्मा जी से कहा, "देखो ब्रह्मा जी, तुलसीदास ने न तो कोई बड़ी पूजा की थी, न ही उसने दुनिया को दिखाने के लिए कोई विशेष तपस्या की। वह केवल सच्चे दिल से मेरी सेवा करता था, यही कारण है कि वह मेरे लिए सबसे बड़ा भक्त बन गया।"

ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु के शब्दों को समझा और कहा, "प्रभु, अब मैं समझ गया। सबसे बड़ा भक्त वह नहीं होता जो दिखावे के लिए पूजा करता है, बल्कि वह है जो दिल से भक्ति करता है, बिना किसी स्वार्थ या दिखावे के।"

भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले, "यही सत्य है, ब्रह्मा जी। सबसे बड़ा भक्त वही है जो बिना किसी स्वार्थ के, निरंतर और निःस्वार्थ भाव से भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है।"

इस प्रकार भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को समझाया कि सबसे बड़ा भक्त वह है जो हर कार्य में भगवान का ध्यान करता है, और जिसकी भक्ति सच्चे प्रेम और समर्पण से भरी होती है।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.