Wednesday, March 12, 2025

नारद की कामदेव पर विजय

प्राचीन काल की बात है, जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था, और देवता अपने आकाशीय कर्तव्यों में व्यस्त थे। एक दिन नारद मुनि, जो देवताओं के सबसे बड़े संदेशवाहक और विश्व के ज्ञानी माने जाते थे, भगवान विष्णु के पास गए। वे भगवान से बात कर रहे थे कि कैसे संसार में व्यक्ति हमेशा अपने भौतिक इच्छाओं और भोगों में लिप्त रहते हैं, और इन्हीं इच्छाओं के कारण वे वास्तविक आत्मा के लक्ष्य से भटक जाते हैं।

नारद मुनि ने भगवान से कहा, "प्रभु, संसार में इच्छाओं का बहुत प्रभाव है। लोग अपनी कामना, भोग और सुख के पीछे भागते रहते हैं। यह सब एक माया है, जिससे व्यक्ति सही मार्ग से भटक जाता है। क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन इच्छाओं पर विजय प्राप्त की जा सके?"

भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले, "नारद, तुम स्वयं एक बहुत बड़े ज्ञानी हो, लेकिन तुम्हारी यह विचारधारा पूर्णत: सही है। यही कारण है कि मैं तुमसे एक विशेष कार्य लेने वाला हूँ।"

भगवान विष्णु ने नारद मुनि से कहा, "कामदेव, जो संसार के सभी जीवों में इच्छाएँ और सुख की कामना उत्पन्न करते हैं, वह तुम्हारे सामने चुनौती के रूप में आएगा। तुम्हें उसे हराना होगा, ताकि तुम यह दिखा सको कि इच्छाएँ और भोग संसार के असल लक्ष्य को प्राप्त करने में रुकावट डालते हैं।"

नारद मुनि ने भगवान के आदेश को स्वीकार किया और कामदेव का सामना करने के लिए निकल पड़े। कामदेव, जिन्हें प्रेम और इच्छा का देवता माना जाता था, नारद मुनि के पास पहुंचे और उन्हें अपने आकर्षक रूप से ललचाने की कोशिश की।

कामदेव ने अपनी प्रेम बाणों से नारद मुनि को प्रभावित करने की कोशिश की। वह बड़े ही मोहक तरीके से बोले, "नारद, तुम जैसे बड़े ज्ञानी भी प्रेम के बिना अधूरे हैं। देखो, तुम जितनी देर यहाँ खड़े हो, तुम्हारे दिल में भी इच्छाएँ जागृत हो रही होंगी।"

नारद मुनि हंसी में बोले, "कामदेव, तुम समझते क्या हो? मैं किसी भौतिक इच्छा में नहीं बंधा। मैं उन इच्छाओं और मोह-माया से मुक्त हूं, जो तुम फैलाते हो।"

कामदेव ने फिर से अपने बाण छोड़े, लेकिन नारद मुनि ने उन्हें शांति से नकार दिया। नारद मुनि ने अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए कामदेव के बाणों को नष्ट कर दिया। उन्होंने ध्यान लगाया और अपने मन को शांत किया। धीरे-धीरे, कामदेव के बाणों का असर समाप्त होने लगा। नारद मुनि ने अपने आत्मबल और साधना से कामदेव की शक्ति को हराया।

कामदेव को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी और वह भगवान विष्णु के पास वापस लौट गए। भगवान विष्णु ने नारद मुनि की सराहना की और कहा, "नारद, तुमने साबित कर दिया कि जो व्यक्ति अपने आत्मा और जीवन के उद्देश्य से जुड़े रहते हुए अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर लेता है, वह न केवल संसार की मोह-माया से मुक्त हो जाता है, बल्कि वह अपने वास्तविक आत्मा के उद्देश्य को भी प्राप्त करता है।"

नारद मुनि ने भगवान विष्णु की तरफ देखा और कहा, "प्रभु, मैंने यह सब आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से किया। इच्छाएँ और कामनाएँ केवल एक भ्रम हैं, और जिन्हें सच्चे ज्ञान का आभास होता है, वे इन्हें पार कर जाते हैं।"

इस प्रकार नारद मुनि ने अपनी ध्यान और साधना से कामदेव पर विजय प्राप्त की और संसार को यह संदेश दिया कि आत्मा का मार्ग सच्चाई, साधना और संयम से खुलता है, न कि भौतिक इच्छाओं और मोह से।

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