धन्य कौन है?
यह कहानी एक छोटे से गाँव की है जहाँ लोग सादा जीवन जीते थे और कड़ी मेहनत करके अपनी रोटी कमाते थे। उस गाँव में एक बूढ़ा आदमी था, जिसका नाम हरिशंकर था। वह बहुत गरीब था, लेकिन उसका दिल बड़ा था। उसकी झोपड़ी के बाहर एक छोटा सा बगीचा था, जिसमें वह दिन-रात काम करता था। हालाँकि उसके पास बहुत ज़्यादा संसाधन नहीं थे, लेकिन वह हमेशा अपने बगीचे से ताज़े फल और फूल गाँव वालों को देता था।
एक दिन गाँव में एक अमीर व्यापारी आया, जिसे अपने धन और शक्ति पर बहुत घमंड था। उसने गाँव वालों से कहा, “मैं जितना भी पैसा कमाता हूँ, उससे मैं तुम सबका जीवन नहीं बदल सकता। तुम लोग कभी मेरे जैसे नहीं बन सकते।”
गाँव वाले चुप थे। कोई कुछ नहीं बोल रहा था, क्योंकि व्यापारी की बातों में सच्चाई थी। लेकिन हरिशंकर, जो हमेशा अपने सादा जीवन में खुश रहता था, खड़ा हो गया। उसने कहा, “धन्य कौन है?” इस सवाल ने सभी को चौंका दिया।
“आप लोग कहते हैं कि धन ही सब कुछ है, लेकिन क्या यह सच है?” हरिशंकर ने मुस्कुराते हुए कहा। "मैंने अपने पूरे जीवन में जो कुछ भी किया है, वह दिल से किया है। मैं लोगों की मदद करता हूँ क्योंकि यही मेरे जीवन का उद्देश्य है। किसी ने कभी मुझसे नहीं कहा कि मेरे पास और अधिक धन होना चाहिए। मेरा धन मेरे काम में है, मेरे अच्छे कर्मों में है।"
व्यापारी आश्चर्यचकित था। उसने हरिशंकर से पूछा, "क्या तुम कह सकते हो कि तुम धन्य हो?"
हरिश्चंद्र ने धीमी मुस्कान के साथ उत्तर दिया, "धन्य वह नहीं है जो अनगिनत धन इकट्ठा करता है, बल्कि वह है जो समाज की सेवा करता है, जो दूसरों के चेहरों पर मुस्कान लाता है। मेरा धन मेरे अच्छे कार्यों में है, और यही असली धन है।"
व्यापारी चुप हो गया। उसे एहसास हुआ कि असली धन केवल धन में नहीं है, बल्कि दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने और आत्मा को शांति देने में है।
और इस प्रकार, ग्रामीण और व्यापारी दोनों को एहसास हुआ कि "वह व्यक्ति धन्य है जो दूसरों के कल्याण में अपने जीवन का अर्थ खोजता है।"
यह कहानी हमें सिखाती है कि असली धन हमारी आत्मा और अच्छे कर्मों में है, न कि धन और भौतिक चीजों में।
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