Sunday, March 23, 2025

abhimaan tyaago, saumy bano

अभिमान त्यागो, सौम्य बनो  

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक युवा लड़का रहता था जिसका नाम सूरज था। सूरज को अपनी बुद्धिमानी और शारीरिक ताकत पर बहुत अभिमान था। गांव में उसे हर कोई मानता और वह अपनी श्रेष्ठता पर गर्व करता था। वह किसी से भी ऊँचा और बेहतर होने का दावा करता था। 

सूरज के दिल में यह विश्वास था कि वह सबसे अच्छा है। गांव के बच्चों के साथ खेलते समय वह अक्सर उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करता और अपना प्रभुत्व जताता। कभी-कभी तो वह दूसरों की मदद की बजाय, उनके ऊपर हंसता और उन्हें ताने देता।

एक दिन गांव में एक वृद्ध महात्मा आए। वे बहुत शांत और संयमित व्यक्ति थे। सूरज ने उन्हें देखा और सोचा, "यह वृद्ध आदमी शायद बहुत कुछ जानता होगा, परंतु वह कमजोर और साधारण सा दिखता है। मुझे उसे अपनी ताकत दिखानी चाहिए।"

सूरज ने महात्मा से कहा, "आप बड़े और अनुभवी हैं, पर क्या आप मेरी ताकत का अंदाजा लगा सकते हैं?"  

महात्मा मुस्कराए और बोले, "तुम अपनी ताकत दिखाना चाहते हो, बेटा, तो मुझे एक काम करो। मैं तुम्हें एक चुनौती देता हूँ।"

सूरज उत्सुक हुआ और बोला, "क्या चुनौती है?"

महात्मा ने कहा, "तुम्हें उस बगीचे से एक फूल लाना है, जो सिर्फ सूरज की किरणों से खिलता है। यह फूल दिन के खास समय में ही खिलता है, और उसके बाद उसे कोई नहीं देख पाता। अगर तुम वह फूल लाकर दिखाओ तो मैं तुम्हें तुम्हारी ताकत का सही मूल्य बताऊँगा।"

सूरज को यह चुनौती कठिन लगने लगी, लेकिन उसे लगा कि महात्मा को हराना उसकी प्रतिष्ठा के लिए जरूरी है। सूरज बगीचे की ओर बढ़ा और घंटों तक उस फूल की तलाश करता रहा। दिन ढलने के साथ-साथ सूरज की ताकत धीरे-धीरे कम होने लगी। थककर वह बगीचे में बैठ गया, लेकिन वह फूल न मिला। रात हो गई और सूरज को हार का एहसास हुआ।

वह महात्मा के पास वापस लौटा और बोला, "मुझे वह फूल नहीं मिल सका।"

महात्मा हंसते हुए बोले, "तुमने सही समय पर प्रयास नहीं किया। फूल सूरज की किरणों से खिलता है, न कि अभिमान से। तुम्हारी ताकत तो केवल शरीर तक सीमित है, लेकिन असली ताकत आत्मा की शांति और सौम्यता में है।" 

सूरज को समझ में आ गया कि वह जितनी शक्ति और प्रतिभा दिखाता था, वह सब केवल आत्म-संतुष्टि के लिए थी। असली शक्ति दूसरों के साथ प्रेम, सहानुभूति और सौम्यता से आती है। 

तभी सूरज ने ठान लिया कि वह अब अपने अभिमान को त्यागेगा और दूसरों के प्रति अधिक सौम्य और विनम्र रहेगा। वह महात्मा के पास जाकर उनके पांव छूने लगा और कहा, "धन्यवाद महात्मा, आपने मुझे सही रास्ता दिखाया। अब मैं दूसरों के प्रति अच्छा और विनम्र बनूंगा।"

उस दिन के बाद सूरज का जीवन बदल गया। वह न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी मजबूत हुआ। उसने सीखा कि आत्मविश्वास और अभिमान में बहुत फर्क होता है, और असली शक्ति केवल सौम्यता में है।

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